उम्र बढ़ने के साथ ही शरीर के ऊतक कमजोर पड़ने लगते हैं शरीर के विभिन्न जोड़ घिसने लगते हैं ऐसी स्थिति में जोड़ों में दर्द रहने लगता है भोजन के प्रति अरुचि होती है प्यास अधिक लगती है हाथ, पैर, जंघा, एड़ी तथा कमर आदि के जोड़ों में दर्द होने लगता है घुटनों में शोथ (सूजन) भी हो जाता है रोग बढ़ जाने पर चलने फिरते समय भयंकर कष्ट होता है बढ़ती उम्र के साथ जो गठिया होता है उसे आस्टियो आर्थराइटिस कहते हैं जोड़ों में सूजन या प्रदाह के कारण उत्पन्न गठिया को रियूमेटाइड आर्थराइटिस कहते हैं जोड़ों में यूरिक अम्ल के जमा हो जाने के कारण उत्पन्न गठिया को गाउटीआर्थराइटिस कहते हैं हीमोफीलिया में रक्त स्राव से जोड़ों में खून के थक्के जम जाने के कारण उत्पन्न गठिया को एक्यूट (गंभीर) आर्थराइटिस कहते हैं क्षय रोग और आम बात में भी हड्डी के जोड़ प्रभावित होते हैं
कंधों में जकड़न --- कंधों को घेरने वाली मांसपेशियों में सूजन आ जाती है कंधे स्वाभाविक रूप से हिलडुल नहीं पाते। हाइड्रोकार्टिसॊनका इंजेक्शन तथा अल्ट्रासॉनिक किरणों से सॆऺकने पर दर्द मॆं लाभ पहुंचता है आस्टियो आर्थराइटिस--- लगभग 50-55 वर्ष की बाद यह शुरू होता है घुटने कन्धे और रीड की हड्डी में दर्द होता है जोड़ों का कार्टिलॆज घिसने के बाद हड्डी घिसनी शुरू हो जाती है किनारे धारदार हो जाते हैं जोड़ हिलने डुलने पर चटखने की आवाज होती है धीरे-धीरे दर्द बढ़ता है जोड़ों की गति कम हो जाती है ध्यान रखना चाहिए कि ऐसी स्थिति में खूब चलें हल्का सा व्यायाम करें और औषधि का सेवन नियम पूर्वक करते रहें ठीक हो जाने के बाद भी पुनः दर्द शुरू हो सकता है उठने, बैठने, चलने फिरने में कष्ट होने लगता है घुटने पूर्णता क्षतिग्रस्त होने पर औषधि की अपेक्षा शल्य क्रिया आवश्यक हो जाती है
रियूमेटाइड आर्थराइटिस---- यह रोग लगभग 40 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं में विशेष कर पाया जाता है घुटने टखने और हाथ के जोड़ विशेष रूप से प्रभावित होते हैं रोगी को निरंतर कुछ न कुछ करते रहना चाहिए इसके साथ ही आराम की भी आवश्यकता होती है कॉर्टिसोन के इंजेक्शन से लाभ प्रतीत होता है असाध्यावस्था में शल्य क्रिया अपेक्षित होती है
रीड की हड्डी की गठिया --रोगी आगे की ओर झुक जाता है रीड की हड्डी के अतिरिक्त कूल्हे और कंधे भी प्रभावित हो जाते हैं यह रोग विशेष रूप से पुरुषों को होता है
गाउट -----घुटने के जोड़ के कार्टिलेज में यूरिक अम्ल के जमा हो जाने के कारण यह अपंग कर देने वाला रोग होता है चिकित्सा में यूरिक अम्ल कॆ दाने न जमा होने पाए इसका उपाय करते हैं इसके लिए रक्त में यूरिक अम्ल की मात्रा कम करने का प्रयास करते हैं मानक पदार्थ और मांसाहार इस रोग की उत्पत्ति में प्रमुख रूप से सहायक है इन्हें तुरंत बंद कर देना चाहिए शाकाहार और तनाव रहित दिनचर्या होनी चाहिए
जोड़ों की टी॰बी॰--- यह रोग कुपोषण से होता है रोग का आक्रमणों जोड़ों पर होता है फेफड़ों का क्षय रोग भी हड्डियों के जोड़ तक पहुंच जाता है इसके भी लक्षण गठिया से मिलते जुलते हैं क्षय की दीर्घकालीन चिकित्सा से इसका उपचार किया जाता है
चिकित्सा (1) --- प्रातः एकपुटिया लहसुन एक पाव दूधमें डालकर उबालें। दूधके आधा पाव रह जानेपर उसे छानकर पी लें। दूसरे दिन दो एकपुटिया लहसुन, तीसरे दिन तीन एकपुटिया लहसुन इसी प्रकार ग्यारहवें दिन ग्यारह एकपुटिया लहसुन दूधमें उबालकर उसे छानकर दूध पी जाएँ। दूध की मात्रा प्रत्येक दिन बढातॆ जावे बारहवें दिनसे लहसुनकी संख्या एक-एक करके कम करते जायें।
(2) ---पुनर्नवा की जड़ १० ग्राम को १०० ग्राम पानीमें उबालें और २५ ग्राम शेष रहनेपर छानकर पी लें।
(3) --- महायोगराज गुग्गुल सुबह-शाम दो-दो गोली महारसनादि क्वाथ के साथ लें !
(4) अश्वगन्ध, चोपचीनी, पीपलामूल, सोंठ इसका समान मात्रामें चूर्ण सुबह-शाम दूधके साथ पीयें।
(5) जोड़ोंपर सेंक करके अरेन्डी के पत्तों पर घी लगाकर बाँधॆ॓।
(6) रातको सोते समय १० ग्राम मेथीका दाना पानी में भिगोकर रख दें सुबह खाली पेट चबा चबाकर खाएं एवं पानी पी ले ।
(7) दर्दके स्थानपर महानारायण तेल एवं महाविषगर्भ तेल की बराबर मात्रा मिलाकर मालिश करें।
पथ्य---गेहूँ, बाजरेकी रोटी, मेथी, चौलाई, करेला,टिंडा, सेब, पपीता, अंगूर, खजूर, लहसुन इत्यादि वस्तुओंका सेवन हितकर है।
अपथ्य---चावल, आलू, गोभी, मूली, सेम, चना, उड़दकी दाल, केला, सन्तरा, नीबू, अमरूद, टमाटर, दही तथा समस्त वायुकारक पदार्थ, दिवाशयन, अधिक परिश्रम इत्यादि रोगको बढ़ाते हैं।
ऑस्टियोआर्थराइटिस (Osteoarthritis)
यह सबसे सामान्य प्रकार है।
बढ़ती उम्र के साथ जोड़ों का घिसना इसका मुख्य कारण है।
रूमेटॉइड आर्थराइटिस (Rheumatoid Arthritis)
यह एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली ही जोड़ों पर हमला करती है।
गाउट (Gout)
इसमें यूरिक एसिड का स्तर बढ़ने से जोड़ों में क्रिस्टल जमा हो जाते हैं, जो तेज दर्द और सूजन का कारण बनते हैं।
एंकायलोसिंग स्पॉन्डिलाइटिस (Ankylosing Spondylitis)
रीढ़ की हड्डी और कूल्हों के जोड़ों में सूजन होती है।
सोरियाटिक आर्थराइटिस (Psoriatic Arthritis)
यह सोरायसिस (त्वचा की बीमारी) से जुड़ा गठिया है।
जोड़ों में दर्द और सूजन
चलने-फिरने या हिलाने में कठिनाई
सुबह के समय जोड़ों में जकड़न (stiffness)
जोड़ों में लालिमा और गर्मी
थकान और कमजोरी
बुखार (रूमेटॉइड आर्थराइटिस में)
हाथ-पैर की उंगलियों का टेढ़ा होना (क्रोनिक स्थिति में)
अश्वगंधा – सूजन और दर्द को कम करने में सहायक।
हरिद्रा (हल्दी) – इसमें मौजूद करक्यूमिन एंटी-इंफ्लेमेटरी होता है।
गुग्गुलु – पुराने गठिया के दर्द में लाभकारी।
रसना चूर्ण, त्रिफला, और दशमूल – शरीर से विषाक्त तत्व निकालते हैं।
पंचकर्म थैरेपी (Panchkarma) – वात दोष संतुलन के लिए उत्तम।
अजवाइन का पानी: रोज सुबह खाली पेट पीने से जोड़ों के दर्द में राहत।
हल्दी वाला दूध: सूजन में राहत देता है।
सरसों के तेल की सेंक: दर्द वाले हिस्से पर मालिश व गर्म सेंक फायदेमंद।
मेथी दाना: रात को भिगोकर सुबह चबाकर खाने से जोड़ों का दर्द कम होता है।
लहसुन: रोज 1-2 कलियां खाने से सूजन और दर्द में राहत मिलती है।
ठंडी और नमी वाली जगह से बचें।
अधिक वजन न बढ़ाएं।
नियमित योग और हल्की एक्सरसाइज़ करें – जैसे भुजंगासन, वज्रासन।
संतुलित और वातनाशक आहार लें।
अधिक नमक, तली चीज़ें और मांसाहार से परहेज़ करें।
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