"बवासीर (Piles): कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक इलाज"

Apr 16, 2025
बीमारियां कारण,लक्षण एवं उपचार
"बवासीर (Piles): कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक इलाज"

बवासीर - कब्ज से उत्पन्न होने वाला रोग  


बवासीर एक बहुत कष्टदायक रोग है और यदि जल्दी ही इसे दूर न किया जा सके तो तो यह बढ़ता जाता है और रोगी का उठना बैठना भी मुश्किल हो जाता है | इस रोग में गुदा के अंकुर फूल कर मटर या अंगूर के बराबर हो जाते हैं | दरअसल ये अंकुर असामन्य रूप से फूली हुई रक्त शिराएं होती हैं जो गुदा या मलाशय के जोड़ पर या गुदा और गुदाद्वार की त्वचा के जोड़ पर स्थित होती है | इनकी स्थिति की आधार पर ही इन्हे आंतरिक या बाह्य बवासीर कहते हैं |  


कारण- गलत खानपान,अनियमित और निष्क्रिय दिनचर्या तथा फास्टफूड जैसे संशोधित खाद्य पदार्थ आज की आधुनिक जीवन शैली के मानक अंग हैं और इन्ही कारण अधिकांश लोग कब्ज जैसी व्याधि से ग्रस्त हैं | कब्ज इस रोग की उत्पत्ति का मुख्य कारण माना जाता है | 


कब्ज होता क्यों है ?? - भारी चिकने तले हुए और तेज़ मिर्च मसालेदार खाद्य पदार्थों का अति सेवन करने से पाचन शक्ति कमजोर होती है जिससे अपच होता है और कब्ज रहने लगता है | अक्सर लोग जल्दवाजी में भोजन करते हैं अतः ठीक से चबाये बिना आहार निगला करते हैं | कब्ज होने का यह एक अहम कारण है | भली भांति कौर को काफी देर तक चबाकर आहार को पानी की तरह पतला कर के ही निगलना चाहिए | बवासीर के रोगी को इस नियम का पालन सख्ती के साथ करना चाहिए | कई लोग दिन में पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं पीते इससे पेट और पूरे पाचन संस्थान में खुश्की और गर्मी बढ़ती है जिससे भी कब्ज बना रहता है | कब्ज होने पर मल सूखता है और ऐसी स्थिति में रोगी शौंच करते समय जोर लगाता है और दूसरा कड़े मल की रगड़ मल मार्ग की आंतरिक परत में स्थित शिराओं पर पड़ती है और परिणामस्वरूप वे शोथ ग्रस्त होकर फूल जाती हैं और बवासीर रोग हो जाता है | 


यूँ तो बवासीर होने का मुख्य कारण कब्ज होना ही होता है लेकिन कुछ और भी कारण होते हैं जैसे - वंशानुगत प्रभाव, आराममतलबी व श्रमहीन दिनचर्या,अधिक समय तक बैठने वाला काम व नरम गद्देदार कुर्सी पर बैठना, बेवक़्त अनियमित ढंग से गरिष्ठ या वासी भोजन करना,चाय या काफी का अत्यधिक सेवन करना,यकृत विकार,अपच,मंदाग्नि,मादक द्रव्यों का सेवन, क्रोधी व ईष्यालु स्वाभाव,मानसिक तनाव आदि | 


लक्षण- पाइल्स यानी बवासीर स्त्री व पुरुष दोनों में समान रूप से पायी जाने वाली व्याधि है | सभी में यह लक्षण दिखाई दें यह ज़रूरी नहीं | 


यह दो प्रकार का होता है - (1) बाह्य या वादी बवासीर (2) आंतरिक या खूनी बवासीर | 


बाह्य या वादी बवासीर - इस प्रकार की बवासीर में मस्से गुदाद्वार के बाहर की तरफ होते हैं | इसके रोगी को मस्सों के स्थान पर दर्द,जलन,खुजली होती है लेकिन इनसे रक्तस्त्राव नहीं होता म्यूकस के कारण रोगी को गीलापन महसूस होता है | 

आंतरिक या खूनी बवासीर - इसमें दर्द के साथ रक्तस्त्राव होता है | मस्सों की स्थिति के अनुसार इसकी चार श्रेणी होती हैं - 

(१) प्रथम श्रेणी - इसमें मस्से मलाशय व उसके गुदा से जुड़ने वाले भाग में स्थित होते हैं तथा इन्हे बाहर से अनुभव नहीं किया जा सकता है | रोगी को सिर्फ रक्तस्त्राव होता है | 


(२) द्वितीय श्रेणी- इसमें मल त्याग के समय मस्से गुदा द्वार से बाहर आ जाते हैं तथा मल त्याग के बादपने आप अंदरचले जाते हैं | 


(३) तृतीय श्रेणी- यह स्थिति भी द्वितीय श्रेणी के समान ही होती है लेकिन इसमें मल त्याग के बाद आये मस्सों को उँगलियों से अंदर करना पड़ता है | 


(४) चतुर्थ श्रेणी -इसमें मस्से हमेशा ही गुदा द्वार के बाहर रहते हैं | 


वादी की बवासीर में खून तो नहीं निकलता लेकिन मलत्याग के दौरान दर्द व जलन बहुत होती है जो मल त्याग के बाद भी काफी देर तक बनी रहती है| गुदाद्वार से चिकना स्त्राव होते रहने से खुजली चलती रहती है | 


खूनी बवासीर में रक्तस्त्राव होने से धीरे-धीरे खून की कमी होने लगती है व शरीर कमजोर हो जाता है | मल त्याग करते समय व बाद में भी काफी देर तक दर्द व जलन बनी रहती है | 


उपचार - सर्वप्रथम तो किसी भी प्रकार की बवासीर हो रोगी को कब्ज नहीं होने देना चाहिए | पानी तथा तरल पदार्थों का अधिक सेवन करना चाहिए | पचने में भारी,गरिष्ठ,वासी,बादी करने वाले तथा मिर्च मसाले वाले तले खाद्य पदार्थों सख्त परहेज़ करना चाहिए | आहार में अधिक से अधिक फल,सलाद,हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन करना चाहिए | चोकर युक्त आटे की रोटी तथा अन्य रेशेदार खाद्य पदार्थों का सेवन चाहिए | 

बवासीर रोगी के लिए छाछ अमृत के समान होता है | 


प्रातः खाली पेट और दोपहर के भोजन उपरांत 1-1 गिलास छाछ जीरा नमक डाल कर प्रतिदिन सेवन करना चाहिए | योगासन और प्राणायाम का नियमित अभ्यास भी इस रोग से मुक्ति पाने में सहायक होते हैं | 


आयुर्वेदिक उपचार - (1) रात में तोरई के चार फल,पानी से भरे हुए लोटे में डालकर सुबह उस पानी से आंव दस्त लेने से 6 माह में बवासीर पूरीतरह ठीक होजाती है | 

(2) 50 ग्राम इमली के बीजों को भिगोकर मुलायम कर के छिलके उतारकर सुखा लें फिर भूनकर चूर्ण बना लें | 6-6 ग्राम चूर्ण दही के साथ दिन में 2 बार खाते रहने से खूनी बवासीर दूर होती है | 


नीम तेल 1 चम्मच + 2 कपूर + ½ चम्मच फिटकरी पाउडर मिलाकर 7 दिन लगाना है | 

गाय के कंडे( गोबर) में नीम की छाल जलाएं एवं अफीम डालकर शौंच की जगह धूनी लेने से वादी बवासीर ठीक होती है | 

तम्बाकू तथा भांग 50 ग्राम पीसकर पुड़िया बना लें इसकी धूनी लेने से मस्से गिर जाते हैं | 

काले तिल धो लें,सुखा लें, तबे पर शुद्ध घी डालकर धीमी आंच में भूनें तथा बराबर शक़्कर मिलाकर 3 ग्रामकी मात्रा गौ दुग्ध के साथ सेवन करें | 

नीम के बीज के अंदर की गिरी 6 ग्राम पानी में पीसकर जल के साथ लें | 

घी के साथ अग्नि में भुनी हुई हरड़ 4 ग्राम चूर्ण को 5 ग्राम पुराने गुड़ और 3 रत्ती भर पिप्पली चूर्ण के साथ मिलाकर सेवन करें | 

नीम के पत्ते और पानी में गलाई हुई मूंग की दाल दोनों को सिल पर एक साथ अच्छी तरह पीसकर लुगदी बना लें,इसके पकोड़े घी में तल कर 21 दिन प्रातः खाने से बवासीर के मस्से ठीक हो जाते हैं | 

केले के साथ दंति अरिष्ट 1 चम्मच जल से दोपहर एवं रात में खाने के बाद लें |

अभयारिष्ट 20ml काढ़ा समान जल से सुबह एवं शाम भोजन के बाद लें | 

अर्श कुठार रस + आर्शोघ्नी वटी + त्रिफला गुग्गुल समान मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर आधा चम्मच चूर्ण ठन्डे जल या मठे के साथ लें | 

नारियल की जटा जलाएं,उसकी राख को छानकर कांच के जार में रख लें, एक चम्मच राख को एक कटोरी दही के साथ 3 दिन तक सुबह,दोपहर, शाम खाली पेट लें | आवश्यकतानुसार समयावधि बढ़ाई जा सकती है | 

अंजीर रात में भिगोकर सुबह खाली पेट लें | 

एक कप गर्म दूध ठंडा कर के एक नीबू निचोड़कर सुबह खाली पेट तुरंत पीने से बवासीर ठीक होता है| ( दूध अंदर फटना चाहिए ) 

नागदोन के 3-5 पत्ते चबाकर खाने से बवासीर ठीक होता है | 

देशी कपूर( भीमसेनी कपूर) चने के बराबर केले में काटकर केले को निगलना है | 3 दिन प्रयोग करें | 

केले को काटकर आधा चम्मच कत्थे को बुरख लें,रात भर छोड़ दें,सुबह खाली पेट छिलका निकालकर लें | 

कपूर की 2 गोली बारीक पीसकर कोलगेट और पानी मिलाकर इस पेस्ट को मस्से पर लगाएं | 

मूली का रस 100 ग्राम हल्का गर्म कर के 15 से 20 बूँद नीबू के रस को मिलाकर खाली पेट लेने से बवासीर ठीक होती है | 

जैतून का तेल 1 चम्मच उसमे 2 पोदीना की गोलियां को पंचर कर के उसका आयल निकाल लें और उसे मिक्स कर लें और इसको दिन में 3 बार मस्से पर लगावें एवं आधा गिलास पानी में आधा नीबू निचोड़कर सुबह दोपहर एवं शाम को पियें|  

केले को काटकर 250 मिग्रा. राई डालकर खाली पेट लें खुनी बवासीर ठीक होती है | 

हडेन्सा ट्यूब मस्से पर लगावें | 



केस्टर्ड आयल, हाजमा पाचक चूर्ण से प्रतिदिन पेट साफ़ कर कब्ज को ठीक करें तभी उपरोक्त दवाइयां जल्दी काम करेंगी 


परहेज -लाल मिर्च और गुड़ का सेवन बिलकुल न करें | कच्चे पापीते का साग एवं पके पपीते का सेवन फा

यदेमंद है | मूली नमक मिलाकर सेवन करें | 

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