ऐसे रोग जिन्हें यंत्र नहीं पहचान सकते: आयुर्वेद की दृष्टि से समाधान

Jul 26, 2025
आरोग्य साधन
ऐसे रोग जिन्हें यंत्र नहीं पहचान सकते: आयुर्वेद की दृष्टि से समाधान

ऐसे रोग, जिन्हें यन्त्र नहीं देख पाते

आयुर्वेद में कुछ रोगों के विस्तृत विवरण मिल जाते हैं जिन्हें आज के यंत्र देख नहीं पाते इन रोगों में से कुछ रोगों का विवरण यहां प्रस्तुत किया जा रहा है

1-- परिणाम शूल

इस रोगका 'परिणामशूल नाम इसलिये पड़ा है क्यों कि छोटी आंतों में भोजन के पाक हो जाने के बाद किट्ट का भाग बड़ी आँतों में पहुँचने लगता है तो उदर भाग में असह्य वेदना उत्पन्न होने लगती है। इसलिये इस वेदना (मूल) का नाम परिणाम शूल है। परिणाम का अर्थ होता है पक जाना क्योंकि भोजन के पक जाने के बाद यह शूल होता है, इसलिये इसका परिणामशूल नाम सार्थक है।

लक्षण--- रोग के नाम से ही इस रोगका लक्षण स्पष्ट हो जाता है। बात यह है कि बड़ी आँतों की दीवार में मल का किट्ट भाग जमकर ठोस परत का रूप ले लेता है। जब भोजन पक जाने के बाद, बड़ी आँतों में भोजन का यह निस्सार भाग फिर पहुँचने लगता है, तब पुरस्सरणक क्रिया के द्वारा उत्तरोत्तर पुराने परतनुमा किट्ट भाग के टकराव से यह वेदना शुरू होती है और बढ़ती चली जाती है। इस तरह भोजनके ३-४ घंटे बाद होनेवाले दर्दको परिणाम शूल कहते हैं।

चिकित्सा चिकित्सा की सफलता यह है कि वह मूल रोग के कारण का निवारण कर दे ।कैस्टर ऑयल (ऐरंड) का तेल पीने से धीरे-धीरे आंतौ में चिपके मल का किट्ट भाग फूल कर बाहर निकलने लगता है इसलिए मशीन में जैसे तेल की जरूरत होती है उसी तरह इस रोग में  आयलिंग की आवश्यकता होती है।

रात को मूंग की खिचड़ी घी के साथ खाएं और सोते समय  एक से  चार चम्मच तक शुद्ध कैस्टर तेल को थोड़े  दूध में मिलकर पी लेना चाहिए उसके बाद मीठा दूध ऊपर से पी लें। पेट सबका अलग-अलग होता है इसलिए किसी को आधे चम्मच से काम चलता है और किसी को चार चम्मच लेना पड़ता है रोगी को ध्यान देना पड़ेगा कि कितने चम्मच कैस्टर ऑयल से उसका एक बार में पेट साफ हो जाता है एक बार पेट साफ अवश्य होना चाहिए कैस्टर ऑयल पीने से पहले 10 ग्राम ईसबगोल की भूसी लेना आवश्यक है।

इसमें दूसरी सावधानी यह बरतनी पड़ती है कि पेट दो घंटेके बाद खाली न रहे। अर्थात् हर दो-ढाई घंटे पर 50 ग्राम दूध में एक चम्मच घर का बना चने का सत्तू मिलाकर पी लिया जाय। जो लोग बिस्कुट खाते हों, वे सत्तू की जगह पर प्रत्येक दो घंटेके बाद आरारोट का बिस्कुट खाकर दूध या पानी पी सकते हैं।

औषध -- (1) शूलवज़ृणी बटी-4 ग्राम, प्रवालपंञ्चामृत 3 ग्राम,  कृमिमुद्रर-3 ग्राम  महाशंख वटी-2 ग्राम,  सीतोपलादि  25 ग्राम, टंकण भस्म-3 ग्राम,  महाशंखभस्म-3 ग्राम और  कपर्दक भस्म-3 ग्राम।

इन सबको पीसकर 21 पुड़िया बना लें। सुबह-शाम  एक पुड़िया शहद से लेकर ऊपर से एक कप दूध पी लें

(2),  इस रोग में पेट खाली पेट नहीं रहना चाहिए इसलिए 250 ग्राम दूध को चार  भाग करके एक भाग को घर के बने चने के सत्तू के साथ लेते रहें जैसा कि पहले लिखा जा चुका है 

(3)--- रात को मूंग की खिचड़ी खाकर सोते समय 10 ग्राम ईसबगोल की भूसी लेकर कैस्टर ऑयल ले लें खिचड़ी में घी मिला लें रोटी भी ली जा सकती है किंतु खिचड़ी ज्यादा हितकर है सोते समय एक से चार चम्मच कैस्टर ऑयल थोड़े से दूध में मिलाकर ले लें बाद में मीठा दूध पी लें 3 दिन के बाद इस तकलीफ से मुक्ति मिल जाएगी धीरे-धीरे 1 किलो से कम कैस्टर ऑयल नहीं पीना चाहिए डेढ़ किलो तक पीना ज्यादा हितकर है।

विशेष --  हिंग्वष्टक चूर्ण तीन-तीन ग्राम भोजन के पहले लें।

पेट में दर्द हो तब अग्नितुंडी वटी दो गोली तोड़कर निगल जाएं और हिंग्वष्टक चूर्ण 5 ग्राम गर्म पानी से ले लें।

(2)सूर्यावर्त (migraine)

आवर्त का अर्थ होता है चारों ओर चक्कर लगाना। इस प्रकार सूर्योवर्त का अभिप्राय यह होता है कि सूर्य का उदित होकर पृथ्वी का चक्कर लगाकर फिर उसका पूर्व दिशा में लौट आना। सूर्य के इस आवर्तन से तय जो रोग उत्पन्न होता है उसे भी लक्षणों से सूर्यावर्त ही कहा जाता है।

 इस तरह सूर्यावर्त शब्द से रोग का पूरा परिचय मिल जाता है पूर्व दिशा में सूर्य का यह उदय भारत से दो-तीन घंटा पहले ही हो जाता है भारत से एक घंटा पहले जापान में सूर्योदय होता है और जापान से एक घंटा पहले प्रशांत महासागर में, इस तरह सूर्य का दर्शन भारत में 2 घंटे बाद ही होता है सूर्य के इस आवर्तन (उदय) के साथ ही सूर्यावर्त का रोग भारतवासी रोगियों को होने लगता है क्योंकि सूर्य अग्नि का पिंड है और अग्नि ही शरीर में पित्त रूप से प्रतिष्ठित है अतः सूर्य से पित्त का गहरा संबंध है प्रशांत महासागर में जब सूर्य का आवर्तन हो जाता है तब रोगी के शरीर में स्थित पित्त भी प्रभावित होने लगता है यह पित्त रोगी के ललाट आदि में स्थित कफ को धीरे-धीरे सूखने लगता है जैसे-जैसे कफ सूखता जाता है वैसे-वैसे रोगी का सिर दर्द (शिरो बेदना) बढ़ता जाता है दोपहर में 2:00 बजे के बाद यह वेदना कम होती जाती है क्योंकि पित्त का बेग भी कम होने लग जाता है और रोगी फिर सिर में केवल भारीपन महसूस करता है उसकी बेचैनी हट जाती है। जीर्ण होने पर यह रोग ललाट में परत की तरह जम जाता है और उसको तेज यंत्र से खरोंच कर निकाला जा   सकता है। इस तरह यह रोग बहुत ही कष्टप्रद है किंतु जितना यह कष्टप्रद है उतनी ही आयुर्वेद में इसकी चिकित्सा सरल बना दी है क्योंकि आयुर्वेद में इसके कारण का पता लगा लिया है और उस कारण के उत्पन्न होने से पहले ही दवा का सेवन करा देता है इसलिए एक-दो दिन में ही इस रोग से मुक्ति मिल जाती है औषध कुछ दिन चलाते रहना चाहिए।

औषध--  आयुर्वेद कारण का पता लगाकर उस कारण को प्रभावहीन करने के लिए प्रशांत महासागर में सूर्योदय होने से पहले ही अर्थात भारत में सूर्योदय होने से लगभग दो-तीन घंटे पहले ही औषध का सेवन करा दिया जाता है । 

विधि---  एक छटाक जलेबी को रात को ही दूध में भिगोकर सुरक्षित रख  लें । गोदंती भस्म दो ग्राम, प्रवाल पिष्टी 2 ग्राम, सिर शूलादि वज्र रस 1 ग्राम ,छोटी हरण 1 ग्राम इन सब को मिलाकर तीन खुराक बना लें पहली खुराक पहले दिन सूर्योदय के एक घंटा पहले, दूसरे दिन दूसरी खुराक सूर्योदय के आधा घंटे पहले, तीसरे दिन तीसरी खुराक सूर्योदय के आधा घंटे बाद, एक मात्रा दही के साथ तीन दिन लें एवं इस दूध जलेबी को खाकर भरपेट पानी पी लेना चाहिए औषध के इस सेवन से सूर्यवर्तन से जो पित्त प्रकुपित होता था वह नहीं हो पाएगा और कफ पिघल कर तीन-चार दिनों में नाक से निकल जाएगा कभी-कभी खून भी निकलता है उसे देखकर रोगी घबराएं नहीं क्योंकि वह दुष्ट अवरुद्ध खून है इसका निकलना ही श्रेयस्कर है   इस विधि से यह रोग चार-पांच दिनों के बाद ही प्रभावहीन तो हो जाता है किंतु कम फायदा होने पर  दवा लेने की समयावधि  बढ़ाई जा सकती है ललाट में चिपके हुए कफ को निकालने के लिए आवश्यकता अनुसार 21 या 41 दिनों तक दूध जलेबी का सेवन करना चाहिए । ताकि वह पित्त फिर जाग न जाए ।यदि षडबिंदु तेल को नाक में 6-6 बूंद डालें तब इस रोग से जीवन भर के लिए छुटकारा मिल जाता है यह तेल इतना उत्तम है की नाक में डालने और सर में लगाने से कंठ के ऊपर के संपूर्ण रोग समाप्त हो जाते हैं स्वस्थ व्यक्ति भी इसलिए इस तेल का सेवन कर सकता है कान आंख नाक के एवं सर के बाल गिरना तथा सफेद होना आदि उपद्रवों से बचाकर रखता है । साइनस के रोगियों को चार वर्षो तक नाक में इसको अवश्य डालते रहना चाहिए यह साइनस रोग भी आज असाध्य ही है शल्य कर्म के बाद भी नहीं जाता बार-बार शल्य कर्म कब तक कोई कराएगा।

(3) वातगुल्म

प्रकृति हमारी माता है हमारे स्वास्थ्य के विरोधी कोई तत्व अगर हमारे शरीर में पनपने लगते हैं तो प्रकृति माता उनको दूर करने के लिए भरसक प्रयत्न करती है आंव भी एक ऐसा रोग है जो शरीर में सेंद्रिय विष तैयार करता है इसलिए प्रकृति माता उस विष को निकालने के लिए बार-बार शौंच की संख्या बढ़ा देती है किसी भी चिकित्सक को प्रकृति के इस कार्य में सहयोग करना ही कर्तव्य है उसके विरुद्ध जाना नहीं ।जब आंव के दस्त लगते हैं तब रोगी को एक तो बार-बार शौंच जाना पड़ता है और उसको मरोड़ भी बहुत होता है वह चाहता है कि इन दोनों कष्टों से बचे और चिकित्सक के पास दौड़ता है इस स्थिति में आयुर्वेद रोगी के कष्ट की निवृत्ति के लिए बेल के मुरब्बे आदि का सेवन कराता है और परहेज कराता है औषधि की योजना ऐसी बताता है की प्रकृति के कार्य में कोई बाधा न पड़े और रोगी का कष्ट दूर हो जाए किंतु आजकल कुछ ऐसी औषधियां निकल गई हैं जिनके खिला देने के बाद रोगी को तत्काल कष्ट से छुटकारा हो जाता है और वह समझता है कि हम शीघ्र ही अच्छे हो गए शायद चिकित्सक भी समझता होगा कि हमने रोगी को ठीक कर दिया किंतु होता है उलटा। प्रकृति जिस विष को आंव के माध्यम से निकालना चाहती थी वह पेट में ही रह गया तब वह दो रूपों में परणित हो जाता है एक तो वह आंतों की दीवार में चिपक कर परत की तरह बन जाती है दूसरे उसी आंव के ऊपर कुछ मांस भी चारों तरफ से बढ़ने लगता है जो कई किलो भार तक हो जाता है किंतु इसे किसी यंत्र से नहीं देखा जा सकता।

 इसी का नाम बातगुल्म है आयुर्वेद के अनुसार गुल्म दो प्रकार के होते हैं बात गुल्म  और रक्त गुल्म, रक्त गुल्म तो गर्भाशय का रोग है और बात गुल्म पेट का रोग है इसे देखने के दो उपाय हैं रोगी को चित्त लिटाकर उसके दोनों पैरों को मोड़कर उसकी नाभि के चारों ओर उंगलियों से टटोला जाए और उसकी सीमा देख ली जाए हाथ का स्पर्श बता देता है कि पेट में एक गांठ है और वह कितनी बड़ी है दूसरा दूसरा उपाय यह है कि पेट खोलकर देखें तो आंख साफ देख लेती है कि पेट में बहुत बड़ी गांठ है एक रोगी का पेट खोला गया उसके पेट में गुल्म  की पांच गांठे थी सब का ऑपरेशन एक साथ संभव न था इसलिए वह सी दिया गया प्राय: एक ही ऑपरेशन में मृत्यु हो जाती है बहुत  सावधानी  बरतने पर कई ऑपरेशन संभव है 

औषध

 (1) महाशंख वटी 2 ग्राम, कृमिमुद्र रस 3 ग्राम, प्रवाल पंचामृत 3 ग्राम, कामदुधा रस 4 ग्राम ,साधारण सूतशेखर रस 3 ग्राम, अम्बर -1/6 ग्राम, सिद्ध मकरध्वज 1 ग्राम, सितोपलादि 25 ग्राम, इन औषधियों  की 21 पुड़िया बनाएं सुबह-शाम एक-एक पुड़िया खाली पेट शहद के साथ लें ।

,(2)   कुबेराक्षादि वटी - दो गोली, लहसुनादि वटी दो गोली , चारों गोलियां निगलकर मीठा कुमारियासव 4 ढक्कन, पानी मिलाकर पी लें!

 इसे भोजन के आधा घंटे बाद दोनों समय लें 

यदि लहसुन का परहेज हो तो लहसुनादि वटी के स्थान पर कपीलुहिंग्वादि बटी एक या दो गोली लें।

 (3)  रात को सोते समय 10 ग्राम ईसबगोल की भूसी के साथ त्रिफला चूर्ण पानी या दूध से लें ।दूध में चीनी मिलाई जा सकती है पेट को साफ रखना आवश्यक है ईसबगोल की भूसी परत की तरह आंतों में चिपके आंव को फुलाता है और त्रिफला उसे निकालता है इसलिए औषधि सेवन करने पर यदि शौच  में चिकनाहट  मालूम पड़े तो रोगी घबराएं नहीं वह समझें कि आंव निकल रहा है इस रोग में प्राय अम्ल पित्त भी हो जाता है ऐसी स्थिति में अविपत्तिकर चूर्ण  5-5 ग्राम भोजन से 10 मिनट पहले पानी से ले लें एक महीने के लिए हर खट्टे फल का सेवन निषेध है इस अवसर पर मलाई  निकले हुए पांव भर दूध को फ्रिज में रख दें यदि फ्रिज न हो तो मिट्टी के बर्तन में पानी डाल दें इस में दूध के बर्तन को रख दें ताकि वह ठंडा बना रहे प्रत्येक 2 घंटे पर 50 ग्राम दूध, घर के चने के सत्तू के साथ लेते रहें इस रोग में परहेज बहुत जरूरी है।

(4) गर्भाशय के ट्यूबों का जाम होना

 गर्भाशय में दो ट्यूब होते हैं संतान के लिए इन ट्यूबों का अत्यधिक महत्व है यदि दोनों ट्यूब जाम हो जाए तो संतान हो नहीं सकती ऐसी स्थिति में निम्नलिखित औषध का सेवन लाभप्रद प्रमाणित हुआ है पहले ट्यूबों की जांच कर लें फिर 6 महीने बाद सफलता मिल जाती है 

औषध 

 (1) रसराज रस 2 ग्राम, गुल्म कुठार रस 2 ग्राम, टंकण भस्म 2 ग्राम, काले तिल का चूर्ण 30 ग्राम, पुनर्नवामंण्डूर 3 ग्राम, इन औषधियों की 21 पुड़िया बना लें सुबह शाम एक-एक पुड़िया शहद से लें या 50 ग्राम चीनी मिले दूध से लें ।

(2)।  400 मिलीग्राम मीठे कुमारयासव में 14 मिलीग्राम शंखद्राव मिला लें। भोजन के आधे घंटे के बाद बोतल को अच्छी तरह हिलाकर कर 4 ढक्कन दवा, छै ढक्कन पानी मिलाकर पी लें पेट साफ करने के लिए हरण आदि लें।

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