बवासीर (अर्श): कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक इलाज

Jul 26, 2025
बीमारियां कारण,लक्षण एवं उपचार
बवासीर (अर्श): कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक इलाज

अर्श या बवासीर

यह एक अत्यंत कष्टप्रद रोग है। जिंदगी को दूभर कर देने वाले इस रोग से ग्रसित व्यक्ति के कष्ट का वर्णन करना कठिन कार्य है। मलद्वार के अंदर तीन वलि (आवर्त) होते हैं  इनकी शिराएं जो श्लेष्मकला के भीतर रहती हैं विछिप्त हो जाने से यह रोग होता है ।पतली शिराओं का एक जाल मलाशय को भीतर चारों ओर से घेरे रहता है इन्हीं शिराओ में रक्त का संचय होकर फूलने से यह मस्से का रूप ले लेता है। मलाशय के दीवार की शिराएं लंबाई में फैली रहती हैं कब्ज से पीड़ित व्यक्ति शौच जाते वक्त शीघ्रता के लिए जब नीचे की ओर  अत्यधिक जोर लगाते हैं तो इन शिराओं में खून उतर आता है बार-बार यह प्रक्रिया जारी रहने पर उतरा हुआ रक्त वापस नहीं जा पाता इस प्रकार दूषित रक्त के संचय होने से मांसाकुर या मस्से उत्पन्न हो जाते हैं। मलद्वार की तीन वलियों (आवर्त) में ये मस्से हो सकते हैं । अंतिम वली में होने वाले मस्से बाहर की ओर दो तीन संख्या में या गुछ्छे के रूप में बाहर निकल आते हैं जो कि शौच जाते समय अत्यंत कष्ट प्रदान करते हैं। ऊपर के पहले आवर्त को प्रवाहिकी कहते हैं इसका कार्य मल और वायु को बाहर निकलना होता है। मध्य के आवर्त को सर्जनी कहते हैं इसका कार्य भी मल और वायु को पूर्णत; बाहर निकाल देना है। तीसरे आवर्त का कार्य गुदा को संकुचित करकेऔर पूर्वावस्था में लाना होता है इन्हीं तीन आवर्तो में अर्श पैदा होता है भीतरी मस्से में उतना दर्द नहीं होता पर शौच के समय कष्ट होता है और रक्त निकलता है।

आयुर्वेदके अनुसार बवासीर के छः भेद होते हैं- (१) वातज, (२) पित्तज, (३) कफज, (४) सन्निपातज, (५) रक्तज और (६) सहज। सामान्यतः बवासीर के दो भेद माने गये हैं-बादी और खूनी।

लक्षण 

बवासीर के मस्सों के प्रक्षुभित हो जाने पर शौच के समय भीषण कष्ट होता है। यहाँ तक कि बैठने में भी दर्द होता है। शौच के समय खूनी बवासीर से काफी मात्रा में रक्त निकलता है। कभी-कभी तो शौच के समय 100-200 ग्राम रक्त निकल जाता है। अधिक चलने से मस्से में रगड़ होने से रक्तस्राव होने लगता है। रोग को तीव्रावस्थामें किसी भी समय रक्तस्राव हो सकता है। मस्सों में सूजन और जलन लगातार होती रहती है। बादी बवासीर में रक्त नहीं निकलता, पर सूजन के कारण शौच के समय तथा वायु निकलने में, चलने फिरने और बैठने में भी बहुत कष्ट होता है।

कारण 

अनियमित रहन-सहन, कड़वा कसैला, नमकीन, खट्टा, चाय काफी, मिर्च मसाला से युक्त वासी एवं गरिष्ठ भोजन,मद्यपान, अजीर्ण तथा कब्ज बने रहना, शौच  के समय खूब जोर लगाना, काफी देर तक एक ही स्थान पर बैठे रहने का कार्य करना, दिवाशयन, वात, पित्त ,कफ का प्रकुपित होना इत्यादि बवासीर होने के प्रमुख कारण हैं चरक ने गर्भपात, गर्भावस्था तथा विषम प्रसूति  को भी अर्श का कारण माना है क्योंकि इनसे भी गुदा की शिराओं में दबाव पड़ता है। अधिक ठंडे स्थान पर देर तक बैठे रहने से भी गुदा की शिराओं के संकुचित हो जाने से अर्श उत्पन्न हो जाता है मद्य का अत्यधिक सेवन पित्तज अर्श की उत्पत्ति करता है।

रोग की साध्यता 

जो बवासीर अंतिम बाहरी आवर्त में होती है और 1 वर्ष से अधिक समय की नहीं होती, उसकी चिकित्सा साध्य है ।दूसरे आवर्त में उत्पन्न मांसाकुर कष्ट साध्य होता है जो बवासीर बहुत समय की हो, वात, पित्त, एवं कफ तीनों दोषों से प्रकुपित होने से हो, गुदा के भीतर की पहली सबसे भीतर के आवर्त में उत्पन्न हो वह प्रायः असाध्य होती है।

अर्श की उचित चिकित्सा नहीं करने से, निरन्तर अहितकर आहार-विहार करते रहने से, मलाशय में शोथ हो जाता है तथा फोड़ा, भगन्दर आदि महाकष्टकारी असाध्य रोग हो जाते हैं। अतः प्रारम्भ से ही इसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिये।

चिकित्सा-

खूनी बवासीर

(1) रात्रि में सोते समय दो- दो चम्मच त्रिफला चूर्ण गर्म जल से लें। 

(2) केले को खड़ा काटकर ढाई सौ 250 मिलीग्राम राई पीसकर डालें , खाली पेट लें खूनी बवासीर बंद होती है। 

 (3) सुबह पुराने चांवल में बनी मूंग दाल की खिचड़ी में 10 ग्राम गौ -घृत  मिलाकर खाएं। खाने के 2 घंटे बाद फुलाया हुआ कली चूना, जो पान में लोग खाते हैं चने के बराबर लेकर रोगी को पके केला में डाल कर निगलने के लिए कहते हैं।

(4) एक चम्मच हल्दी 

एक चम्मच अरंड का तेल 

एक चम्मच नींबू का रस 

पेस्ट बनाकर इनफेक्टेड भाग में लगावें। 

(5) कन्जा (करंज) के पत्तों को घी या तेल में भून कर मट्ठे के साथ खाने से बवासीर मिट जाती है। 

(6) खूनी बवासीर में करंज की जड़ को गोमूत्र के साथ पीसकर मिलाकर इनफेक्टेड भाग में लेप करें।

 बादी बवासीर 

(1)  50 ग्राम खट्टी इमली के बीजों को भिगोकर मुलायम करके, छिलके उतार कर सुखा लें। फिर  भूनकर चूर्ण बना लें। 6-6 ग्राम चूर्ण दही के साथ दिन में दो बार खाते रहने से बादी बवासीर ठीक होती है।

(2) नीम तेल एक चम्मच, दो कपूर की टिकिया, एक चम्मच फिटकरी का पाउडर मिलकर पेस्ट बना लें एवं लेप करें। 

(3) छोटी हरड़ को घी में भूनकर चूर्ण बनाएं बराबर मात्रा में पिप्पली चूर्ण मिलाकर मट्ठे या दही के साथ खाने से बादी बवासीर ठीक होती है।

(4) नीम के बीज के अंदर की गिरी 6 ग्राम पानी में पीसकर जल के साथ लें। 

(5) नारियल की जटा जलाकर उसकी राख को छानकर कांच के जार में रख लें एक चम्मच राख को एक कटोरी दही के साथ तीन दिन लगातार लें।

(6) देशी कपूर (भीम सैनी कपूर) चने के बराबर केले में काटकर केले को निगलना है  बवासीर ठीक होती है।

बवासीर की चिकित्सा में यह ध्यान रखना चाहिये कि किसी भी प्रकार से कब्ज न रहे। कब्ज के लिये निम्र योग लेना चाहिये

(अ) प्रातः सूखे आँवले का चूर्ण 2 ग्राम।

(ब) दोपहर को ईसबगोल की भूसी 10 ग्राम की मात्रा में नीबू पानी के साथ।

(स) रातको सोते समय 10 ग्राम त्रिफला चूर्ण गरम दूध के साथ लें। इसके अतिरिक्त दो हरें भी पानीके साथ निगल सकते हैं।

आयुर्वेदिक योग 

= भोजन के बाद दो चम्मच अभयारिष्ट समान जल से लें ।

= काले तिल का चूर्ण तथा भिलावे का चूर्ण समान मात्रा में लेकर मट्ठे के साथ दो-तीन बार पिएं।

= बेल का मुरब्बा या कच्चे बेल को भूनकर खाएं सूरन का भर्ता लाभप्रद है।

= कोष्ठ शुद्धि के लिए अरंड का तेल पीना चाहिए। दर्द तथा जलन के स्थान पर भांग अथवा अफीम बांधनी चाहिए।

 =गाय के दूध के मट्ठे में लवण भास्कर चूर्ण मिलाकर प्रातः और दोपहर में पिएं ।

मट्ठे का अधिक से अधिक सेवन करें।

= करेले के रस में मिश्री मिलाकर पीने से बवासीर में लाभ पहुंचता है।

 = रसौत 7 ग्राम, मुनक्का बीज सहित  14 ग्राम ,और कतीरा 7 ग्राम, इनको कूट पीसकर महीन चूर्ण बनाएं, छोटी बेर के बराबर इसकी गोलियां बनाकर प्रतिदिन सुबह शाम सेवन करें ।

= कमल की केसर शहद, ताजा मक्खन, 

 लाल चंदन, चिरायता, धमाशा, और सोंठ समान मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर पिएं। 

= चंद्रप्रभा वटी सुबह-शाम एक-एक गोली दूध के साथ लें ।

= कुमार्यासव दो चम्मच तथा दशमूलारिष्ट दो चम्मच मिलाकर सामान जल से भोजन के बाद दिन में दो बार लें।

=अर्श कुठार रस, अर्शोघ्नी वटी और  त्रिफला गुग्गुल समान मात्रा में पीसकर चूर्ण बना लें आधा चम्मच चूर्ण मट्ठे या ठंडे जल से सुबह शाम खाली पेट लें।

क्षार सूत्र चिकित्सा

 इस पद्धति में क्षार सूत्र द्वारा मस्सों को बांध देते हैं। सूत्र में लगे क्षार अपने औषधीय गुणों से मस्सों को काट देते हैं मस्सों में अपामार्ग क्षार, उदुम्बर क्षार,स्त्रूहीक्षार, नियमित रूप से लगाने पर मस्से सूख कर बाहर निकल जाते हैं। बड़े मस्सों के लिए क्षार सूत्र का प्रयोग करते हैं। मजबूत धागे पर हल्दी क्षार एवं स्त्रूही के दूध की क्रमशः 21 परतें चढ़ाकर सूखने के बाद क्षार सूत्र तैयार होता है। ज्ञार सूत्र से मस्से को कसकर बांध देते हैं जिससे बंधे स्थान पर मस्सा कटता जाता है ।और घाव भी स्वत: ठीक होता जाता है। प्रत्येक सप्ताह चार सूत्र बदल दिया जाता है। क्षार सूत्र लगवाने के घंटे -दो -घंटे बाद सामान्य रूप से कार्य किया जा सकता है। इस समय अर्शोघ्नी वटी, शोभान्जन वटी लें तथा मस्सों पर जात्यादि  तेल लगाना चाहिए। हृदय रोग, मधुमेह, मोटापा, अल्सर, टीवी के रोगियों को क्षार सूत्र नहीं लगना चाहिए। पहले इन रोगों की चिकित्सा करनी चाहिए। 

पथ्य 

नेनुआ, तुरई, लौकी, मूली, खीरा, पपीता, कच्चा एवं पका, भिंडी, पुराना चांवल ,मूंग की दाल, कुलथी की दाल, बथुआ, करेला, टमाटर ,सूरन, मिश्री, किशमिश, इलायची ,मट्ठा, गोमूत्र, चोकर युक्त आटे की रोटी, अर्श रोग में हितकर हैं । 

अपथ्य 

खट्टा, मिर्च मसाला, वासी एवं गरिष्ठ भोजन , उड़द, तले भुने पदार्थ, कोहड़ा ,बैगन, आलू, मलमूत्र और अपान वायु  के वेगों को रोकना, दिवा शयन, अत्यधिक चलना फिरना और अधिक परिश्रम, करना।

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