(१) बिना नाम का रोग
लक्षण
एक रोगीको देखा गया उसके दाहिने हाथ की कलाई के तीन हिस्से सूख गये थे, एक हिस्सा बचा था उसके उसी हाथ की दो उंगलियां कंधे से लग गयी थी ।उस हाथ को हिलाना या इधर-उधर करना सम्भव न था। वह रुग्ण हाथ केवल बेकार ही नहीं हुआ था, अपितु तकलीफ भी देता रहता था। रोगी का सोना भी कठिन हो रहा था,
औषध
(1) ऐसे रोगों की दवा वात, पित्त, और कफ का सामन्जस्य बिठाकर दवा करनी चाहिए ऐसे रोगों में हृदय से जिन रक्त वाहिनियों के द्वारा रक्त के संचार में अवरोध उत्पन्न हो गया है उन्हें समाप्त करना के लिए उन्हें निम्न दवाएं दी जाना चाहिये
। रसराज रस-डेढ़ ग्राम, स्वर्णभस्म-20मिलीग्राम, महाशंखवटी- 2ग्राम, कृमिमुद्रररस - 3 ग्राम,चन्द्रप्रभावटी- 3ग्राम, सीतोपलादि- 25 ग्राम प्रवालपञ्चामृत- 3ग्राम, पुनर्नवामंडूर- 3ग्राम,
कुल 21 पुड़िया बनाकर सुबह शाम खाली पेट शहद के साथ लें।लाभ कम दिखने पर रसराज रस की मात्रा 3 ग्राम तक दी जा सकती है। साथ में एक पुटिया लहसुन भी खाना चाहिए शीत ऋतु में लहसुन की पांच-पांच पुटिया दूध में उबालकर भी ली जा सकती है
(2)। 50 ग्राम साधारण लहसुन को दो चम्मच तिल्ली या सरसों के तेल में पीसकर उबटन बनाकर घायल हाथ में ऊपर से नीचे तक उबटन लगाकर तुरंत धो लेना चाहिए नहीं तो त्वचा जल जावेगी
(2) स्क्लेरोडर्मा
लक्षण
उंगलियों का सड़ना, उंगलियों को घुमाने में कठिनाई होना, त्वचा की ऊपरी सतह का एकदम पीला होना, मुंह को फैलाने में असमर्थता का अनुभव होना, अस्थियों पर पाई जाने वाली त्वचा में कसाव परिलक्षित होना।
औषध
रसराज रस 1 ग्राम, स्वर्ण भस्म 30 मिलीग्राम, प्रवाल पंचामृत 3 ग्राम, चंद्रप्रभा वटी 3 ग्राम , कृमिमुद्र रस 3 ग्राम, सितोपलादि 25 ग्राम ,मोती पिष्टी 1 ग्राम ,कुल 31 पुड़िया बनाकर एक-एक पुड़िया दिन में तीन बार सुबह दोपहर और शाम 8 - 8 घंटे के अंतराल से लेना चाहिए।
10 दिनों के बाद उपर्युक्त योग में रसराज रस की मात्रा दो ग्राम कर दें। फिर 21 दिन से तीन-तीन ग्राम कर दें। पेट साफ न हो तो छोटी हरण का प्रयोग करें।
(3) हिपेटाइटिस-बी
ऑस्ट्रेलियाई वायरस के द्वारा हिपेटाइटिस- बी रोग हो जाता है यह रोग होने न पाए इसका उपाय आज के विज्ञान ने सोच लिया है महीने महीने पर एक सुई लगाई जाती है जिससे कहा जाता है कि इस सुई को लगवाने वाले व्यक्ति को हिपेटाइटिस- बी नहीं हो सकेगा किंतु हिपेटाइटिस बी रोग जब हो जाता है तब आज के विज्ञान के पास ऐसी कोई दवा नहीं है जिससे रोगी को मृत्यु के मुख से बचाया जा सके शत प्रतिशत मृत्यु हो जाती है।
रोग का कारण
इस रोग में ऑस्ट्रेलियाई वायरस खान-पान के द्वारा मुख मार्ग से शरीर में प्रविष्ट हो जाते हैं और यकृत (लीवर) में अड्डा जमा लेते हैं और जब इनका पूरा परिवार विकसित हो जाता है तब यकृत की पित्त स्राव क्रिया में अवरोध हो जाता है और यकृत फूल कर पेट में फैल जाता है जिसको छूकर हम प्रत्यक्ष कर सकते हैं। इसके बाद असहनीय पीड़ा होने लगती है। हाथ पैर ठंडे होने लग जाते हैं और रोगी का प्राणांत हो जाता है
आयुर्वेद प्राचीन काल से यकृत संबंधी व्याधियों की चिकित्सा सफलता पूर्वक करता आ रहा है आज भी यकृत की सारी व्याधियों की चिकित्सा कैंसर छोड़कर आयुर्वेद से हो जाती हैं हिपेटाइटिस- बी का सामान्य अर्थ पीलिया होता है इस रोग में पुनर्नवा की जड़ का स्वरस 50 ग्राम सुबह, दोपहर ,शाम तीन बार दिया जाता है। मूली का रस सवेरे ,और ईख का रस कई बार प्रयोग किया जाता है आजकल ईख के रस की जगह ग्लूकोस दे दिया जाता है। ग्लूकोस बड़ी मात्रा में 100-100 ग्राम तीन- चार बार पिलाते रहना चाहिए। इस तरह हिपेटाइटिस-बी का मुख्य औषध तो पुनर्नवा का रस है अन्य औषधियां निम्नलिखित हैं
पुनर्नवामंडूर 3 ग्राम, प्रवाल पंचामृत 3 ग्राम, रस सिंदूर 2 ग्राम, सितोपलादि 50 ग्राम, इन सबों की 31 पुड़िया बनाएं एक-एक पुड़िया सुबह दोपहर शाम खाकर ग्लूकोस मिला हुआ पुनर्नवा का रस लेते जाएं शौच शुद्धि में के लिए छोटी हरण का उपयोग करें आंवले का रस भी हितकारी है इस रोग में हल्दी घोर अपथ्य है आधुनिक परीक्षण कराते रहें औषधि डेढ़ -2 महीने चलाना चाहिए।
(4) कैंसर
जिन असाध्य रोगों की चर्चा यहाँ की जा रही है, उनमें कैंसर आज भी साध्य नहीं माना जाता। क्यों कि अभी तक इसमें कोई ठोस परिणाम उपलब्ध नहीं हो सके है। किंतु आज के विज्ञान ने बहुत-से रोगों को प्रत्यक्ष-सा कर लिया है। इस रोग में निम्न लक्षण दिखाई देते हैं
लक्षण
(१) शरीर में पड़े तिल, मस्से आदि के वर्ण एवं आकार में परिवर्तन होना, (२) घाव का न भरना,
(३) स्तन, ओष्ठ आदि किसी अङ्ग पर गाँठ का बनना,
(४) मलकी अति प्रवृत्ति या क़ब्ज़ का होना,
(५) वजन कम होना,
(६) अकारण थकावट महसूस होना।
इन लक्षणों के होने पर चिकित्सकों से अपना परीक्षण कराना आवश्यक है। कैंसर में किसी अंग के ऊतक की कोशिकाओं में असीम रूप से विभाजन होने लगता है जिससे यह व्याधि निरंतर बढ़ती रहती है। कोशिकाएं पोषक तत्वों को चूस कर अन्य अंगों को अस्वस्थ कर देती हैं।
अनुभूत औषध
यहां अनुभूत औषध दिए जा रहे हैं जिनसे कैंसर रोग की रोकथाम तो होती ही है, हो जाने पर उसे निर्मूल भी किया जा सकता है फेफड़े के कैंसर भी अच्छे हो गए हैं लीवर कैंसर पर इसका उपयोग संदेहास्पद रहा है। सेमिनोवा कैंसर को तो निश्चित और शीघ्र ही ठीक किया जा सकता है हां कार्सिनोवा कैंसर में देर लगती है किंतु जो दवा लिखी जा रही है उससे लाभ ही लाभ होना है कोई प्रतिक्रिया नहीं होती
सिद्ध मकरध्वज 1 ग्राम,
स्वर्ण भस्म 30 मिलीग्राम
नवरत्न रस 3 ग्राम
प्रवालपंच्चामृत 3 ग्राम्,
कृमिमुद्रररस- 3 ग्राम
बृहद् योगराज गुग्गुल 3 ग्राम, सितोपलादि 50 ग्राम,
अम्बर-- 1/4 ग्राम
पुनर्नवामण्डूर- 3 ग्राम
तृणकान्तमणिपिष्टि 3 ग्राम।
खून आनेको स्थिति में बीच-बीच में एक कप दूब (दुर्वा) का रस भी ले लेना चाहिये। इसे दवा के साथ ही लेना कोई आवश्यक नहीं है।
सेवन विधि
सभी दवाओं को अच्छी तरह घोंटकर 41 पुड़िया बनायें। सुबह एक पुड़िया शहद से चाटकर ताजा गोमूत्र पीयें। बछिया का गोमूत्र ज्यादा अच्छा माना जाता है। उसके अभाव में स्वस्थ गाय जो गर्भवती न हो, उसका मूत्र भी लिया जा सकता है। गोमूत्र सारक (दस्तावर) होता है इसलिये सबको एक तरह से नहीं पचता है। इसे आधी छटाक से शुरू कर 200 ग्राम तक बढ़ाना चाहिये।
दूसरी खुराक 9 बजे दिन में तथा तीसरी तीन बजे शाम को गेहूँ के पौधे के रस से लेनी चाहिये। गेहुँ के पौधे का रस भी आधी छटाक से शुरू कर 200-200 ग्राम तक होना चाहिये। देशी खाद डालकर गेहूँ का पौधा लगा देना चाहिये। दूसरे दिन दूसरी जगह लगाना चाहिये। इसी तरह प्रतिदिन
10 दिन तक अलग-अलग स्थान पर गेहूं बोना चाहिए दसवें दिन का पौधा काटकर धोकर पीसकर उसका रस लेना चाहिए काटने के बाद उसी दिन फिर गेहूं बो देना चाहिए इस तरह प्रतिदिन काटना बोना चाहिए।
जब तक गेहूं तैयार न हो और गेहूं के पौधे का रस न मिले तब तक दूसरी और तीसरी पुड़िया को तीन ग्राम कच्ची हल्दी का रस- लगभग दो चम्मच (कच्ची हल्दी न मिलने पर सूखी हल्दी का चूर्ण एक चम्मच) और दो चम्मच तुलसी का रस मिलाकर दवा लेनी चाहिए।
हरिद्राखंड(हरिद्राखंड नाम का चूर्ण प्रत्येक औषध निर्माता बनाते हैं) को मुंह में रखकर बार-बार चूसते रहना चाहिए। चूसने के पहले गर्म पानी और नमक से दांतों को सेंकना चाहिए।
यदि गले या स्तन आदि में कहीं गाँठ हो गयी हो तो उसको गोमूत्र में हल्दी का चूर्ण मिलाकर गरम कर साफ रुई से सेंकना चाहिए और इसी की पट्टी लगानी चाहिये। यदि घाव हो गया हो तो नीम के गरम पानीसे सेंककर मनः शिलादि मलहम लगाना चाहिये।
सावधानी
यह मलहम जहर होता है, इसलिये मुखवाले (घाव) रोग में इसे न लगायें। अपितु कभी-कभी रूई को गोमूत्र में भिगाकर उस स्थान पर रख दें या कच्ची हल्दी का रस या सूखी हल्दी के चूर्णके रसको रूई द्वारा इस स्थानपर रख दें। सुबह-शाम दो बार नीम के पानी में से सेंकना आवश्यक है। मलहम लगाकर हाथोंको राख से खूब साफ करना चाहिये। छः बार तक गरम चाय पीयें और हरिद्राखण्ड चूसते ही रहें।
इस रोग में हरी पत्ती की चाय बहुत उपकार करती है। चौबीस घंटे में हरी पत्ती वाली चाय की मात्रा 5 ग्राम ही होनी चाहिये। इसी को दूध मिलाकर चाय बनाकर बार-बार पीते रहना चाहिये। इससे ताकत बनी रहती है और रोग बढ़ नहीं पाता
(5)--- प्लास्टिक एक्जिमा प्लास्टिक एक्जिमा के रोग का निर्णय हो जाने पर निम्नलिखित दवा का सेवन करें।
पुनर्नवा मण्डूर 4 ग्राम
स्वर्ण भस्म 30 मिलीग्राम
मोती पिष्टी 1 ग्राम
प्रवाल पंचामृत 3 ग्राम
कृमिमुद्र रस 3 ग्राम
सिद्ध मकरध्वज 1 ग्राम
चंद्रप्रभा वटी 4 ग्राम
सितोपलादि 25 ग्राम
कासीस भस्म 2 ग्राम
कुल 41 पुड़िया गोमूत्र से 9:00 बजे दिन तथा 3:00 बजे दिन में तथा शाम को गेहूं के पौधे के रस के साथ एक पुड़िया शहद से चाट लें।
विशेष सूचना
उपर्युक्त सभी अनुपानों में तीन-तीन चम्मच लिबोसिन या लिवोकल्प मिला लें तो उत्तम लाभ होगा।
(6) पथरी
पथरी का रोग आज आम बात हो गई है। 60 -70 वर्ष पहले भोजन में कुलथी की दाल खाई जाती थी बाजार में मिलती थी किंतु इधर लोगों ने उसको खाना बंद कर दिया इसका परिणाम यह हुआ है कि आज पथरी का रोग वेग से बढ़ रहा है यदि कुलथी का पानी भी पिया जाए तब इस रोग को या तो निकाला जा सकता है या गलाया जा सकता है मूत्र वाहिनी का पत्थर शीघ्र ही निकल जाता है यदि यह किडनी या गॉल ब्लेडर में हो जाता है तो देर लगती है क्योंकि वहां से निकाला नहीं जा सकता हां गलाया जा सकता है। दोनों स्थिति में शल्य कर्म की आवश्यकता नहीं होती। कुलथी अपने प्रभाव से उस रोग को जड़ मूल से साफ कर देती है। *
औषध एवं उसके सेवन की विधि इस प्रकार है।
हजरूल यहूद भस्म- 3 ग्राम, श्वेत पर्पटी -3 ग्राम, पाषाण भेद-3 ग्राम, चन्द्रप्रभावटी - 4 ग्राम
इन सबकी 21 पुड़िया बनायें। सुबह-शाम एक-एक पुड़िया निम्नलिखित काढ़े से लें।
काढ़ा
कुलथी की दाल- 100 ग्राम, वरुण (वरुणा) की छाल- 15 ग्राम,गदहपूर्णा की जड़- 10 ग्राम, छोटी गोखरू- 6 ग्राम , बड़ी गोखरू-6 ग्राम ग्राम भिंडी के बीज- 3 ग्राम , पानी - 500 ग्राम
इन सबको जौकूट (जौके बराबर) चूर्ण कर लें। काढ़े को दवाओं को बहुत महीन न करें। जौकूट-चूर्ण को आधा किलो पानी में रात में भिगो दें। सबेरे धीमी आँच पर काढ़ा बनायें। शेष 100 ग्राम रहने पर उतार लें। 50 ग्राम काढ़ा सुबह एक पुड़िया खाकर पी लें।
पथ्य-
नेनुवा, लौकी, परवल, पपीता, करेला आदि सब्जियों को हल्के तेल में जीरे से छौंककर धनिया, हल्दी, काली मिर्च-इन मसालों को खाया जा रहे सकता है। गरम मसाला न लें।
अपथ्य
कैल्शियम की वस्तुएं जैसे दूध और रत्नों की भस्म एवं टमाटर न लें।
सूचना
यदि यूरेटर में बड़ा पत्थर होता है तो इन दवाओं से निकलते समय दर्द महसूस होता है इस दर्द को शुभ लक्षण समझना चाहिए क्योंकि पत्थर अपने स्थान से हटकर पेशाब के रास्ते निकलना चाह रहा है ऐसी स्थिति में बार-बार खूब पानी पीना चाहिए इससे उसके निकलने में सुविधा होती है यदि पथरी छोटी होती है तो तकलीफ नहीं होती आसानी से मूत्र मार्ग से निकल जाती है। बड़ी पथरी निकलने के बाद देखने में मांस का टुकड़ा लगता है क्योंकि मांस को काटते हुए बाहर निकलता है उसे रख दिया जाए तो 12 घंटे बाद वह पत्थर नजर आने लगता है इस पत्थर का रंग हजरत यहूद पत्थर की तरह नीलाभ होता है
(7) प्रोस्टेड ग्लैंड (पौरुष ग्रंथि)
पौरुष ग्रंथि का रोग केवल पुरुषों को ही होता है। क्योंकि पुरुषों में ही यह ग्रंथि पाई जाती है। पाँच वर्ष पहले तक शल्य कर्म बार-बार करने से भी प्रायः यह रोग नहीं जाता था, किंतु आयुर्वेदिक औषध के सेवन से यह रोग समूल नष्ट किया जा सकता है।
औषध
कांचनार गुग्गुल- 25 ग्राम, चंद्रप्रभा वटी- 5 ग्राम, चतुर्मुख रस-1/4 ग्राम,
चतुर्मुख रस 1/4 ग्राम,
प्रवाल पंचामृत- 3 ग्राम,
ताम्रभस्म- 1/8 ग्राम-
इन सबकी 21 पुड़िया बनायें। एक पुड़िया दवा खाकर निम्नलिखित काढ़े में 8 बूँद शिलाजीत और 2 ग्राम शीतल चीनी चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम पी लें। अपने संतोष के लिये दो-दो महीने पर जाँच करायें। छः महीने में रोग समाप्त हो जायगा।
काढा
वरुण (वरुणा) की छाल- 15 ग्राम,
गदह पूर्णा की जड़- 10 ग्राम, छोटी गोखरू- 6 ग्राम, बड़ी गोखरू-6 ग्राम
पंचतृणमूल अर्थात्
ईखकी जड़- 3 ग्राम,
कांस की जड़- 3 ग्राम,
साठी धान की जड़- 3 ग्राम,
कुश की जड़- 3 ग्राम।
शरकण्डे की जड़ 3 ग्राम,
सहजन की छाल 10 ग्राम।
आधा किलो पानी में काढ़ा बनायें उबालें ।100 ग्राम शेष रहने पर 50 ग्राम सुबह तथा 50 ग्राम शाम दवा के साथ लें।
विशेष-
यदि मूत्र में दाह हो तो तीन बूँद चन्दन का तेल तथा तीन ग्राम शीतल चीनी का चूर्ण काढ़े में मिला लें।
(8) मायोपैथी
यह मांसपेशियों का रोग है विज्ञान की जांच से जब यह रोग ज्ञात हो जाए तब इसकी चिकित्सा प्रारंभ करें वैसे यह रोग असाध्य है किसी पैथी में इस रोग को हटाने की क्षमता नहीं है आयुर्वेद से इस रोग में कितना प्रतिशत लाभ होता है ठीक से नहीं कहा जा सकता।
दवाका क्रम-
रसराज रस- डेढ़ ग्राम, वृहद्ववातचिन्तामणि रस आधा ग्राम, मल्लसिन्दूर-डेढ़ ग्राम, प्रवालपंचामृत तीन ग्राम, कृमिमुद्रर रस- 3ग्राम, गिलोयसत- 25 ग्राम
इन सबकी इकतीस पुड़िया बना लें।
सेवनविधि
एक पुड़िया सुबह एक पुड़िया शाम को शहद के साथ लें
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